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राम वनवास, राम, केवट संवाद, दशरथ मरण, भरत चित्रकूट गमन का हुआ सफल मंचन – C भारत न्यूज

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राम वनवास, राम, केवट संवाद, दशरथ मरण, भरत चित्रकूट गमन का हुआ सफल मंचन

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  • राम वनवास, राम, केवट संवाद, दशरथ मरण, भरत चित्रकूट गमन का हुआ सफल मंचन

 

शाहाबाद (हरदोई) 9 अक्टूबर। श्री रामलीला मेला मोहल्ला पठकाना शाहाबाद के मंच पर विछोह व व्याकुलता के दुखद दृश्यों के दृष्टव्य होने से कलाकारों से दर्शकगणों तक एवं अधिकांश महिलाओं के नयनों से आँसू छलक आए।

बीती रात रामलीला देख रहे किसी दर्शक ने अपने नयनों को भींच लिया और किसी के नयन अंततः मंचासीन पात्र कलाकारों की अकुलाहट पर अश्रुपूरित हो ही गए। जिनमें मेला मैदान में बैठी माताओं बहनों बेटियों समेत बच्चों तक के नेत्र उस समय सजल मालुम हुए, जब पर्दा उठा और राम वनवास का वरदान कैकेई ने राजा दशरथ से मांग लिया, परिणामस्वरूप राम के साथ सीता और लक्ष्मण के वनवास जाते ही राजमहल से लेकर सम्पूर्ण अयोध्या का वातावरण व्याकुल हो गया। असामान्य परिस्थितियों में नर नारी नयनाभिराम राम के लिए व्याकुल होने लगे। मौके पर रामलीला देख रहे बडे़ बड़े पत्थर ह्रदय पिघलते परिलक्षित हुए। फिर भी राम अपने भाई लक्ष्मण पत्नी सीता और सुमंत के साथ वनवास के लिए अयोध्या से निकल गए। और जब अर्ध रास्ते में राम लक्ष्मण सीता सुमंत के दर्शन से मंत्रमुग्ध होने पर भी निषादराज मांगी नाव न केवट आना अर्थात नौका नहीं लाया। हालांकि स्वयं चलकर आया तो जब उसे सबने बहुत समझाया तो पग पखारने पर अड़ गया। यद्वपि पग पखार कर निषादराज ने वन गमन कर रहे राम को सीता लक्ष्मण सहित पार उतारा और अत्यंत व्यथित मंत्री सुमंत को अयोध्या प्रस्थान हेतु वापस भेजा। परन्तु संध्या समय जैसे ही मंत्री सुमंत ने असाध्य अयोध्या में मरणासन्न दशरथ को राम के वनवास चले जाने और 14व र्षों तक लौटकर न आने का संदेश सुनाया कि राम लक्ष्मण सीता सहित वन को चले गए तथा उनके समझाने के पश्चात भी नहीं लौटे तो देखते ही देखते दशरथ को श्रवण के अंधे माता पिता के श्राप से श्रापित होने का दृश्य दिखने लगा तथा देखते ही देखते पुत्र वियोग में व्याकुल दशरथ के प्राण पखेरू उड़ गए। सबकेसब दर्शकगण स्तब्ध दशा में दशरथ मरण को देख रहे थे और उस समय सभा मध्य बैठीं कुछ माताएं ही नहीं अपितु बहुत से वृद्ध पिता भी अत्यंत व्यथित प्रतीत हो रहे थे। सम्भवतः वह वृद्ध पिता भी दशरथ मरण के मंचन से निज पुत्रों के आचरण एवं व्यवहार या विछोह की कल्पना से चिंतित प्रतीत हो रहे थे। अंततः दशरथ के प्राण पखेरू उड़ते ही नाट्य मंच का पर्दा गिर गया और उसके बाद जब पर्दा उठा तो भरत अपने भइया राम, लक्ष्मण सहित सीता को वापस लाने के लिए वन गमन कर गए। अंततः एक बार फिर पर्दा गिरते ही दर्शकगण अपने जीवन की स्थितियों परिस्थितियों में ध्यानमग्न होकर मेला मैदान की धरती से धीरे धीरे अपने अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान कर गए। मेला समिति सहित बहुत से लोग रुके रहे जो कि आरती के बाद चले गए।

सत्यपाल सिह हरदोई

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